Thursday, September 29, 2011

Day 3 - 4 Navratri - Maa kushmaanda

           विक्रम सम्बत २०६८ -  आश्विन शुक्ल चतुर्थी  -  माँ कुष्मांडा 


 सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
  दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

भगवती दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था। चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था। तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं। इनकी आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। नवरात्रे -पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरुप की ही उपासना की जाती है। इस दिन माँ कूष्माण्डा की उपासना से आयु, यश,
बल ,और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

ध्यान


वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्।
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥


स्तोत्र


दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्।
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥


कवच

हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा।
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥


Day 3 Navratri - Maa Chandra ghanta


पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता
  संवत २०६८ अश्विन्शुक्ल्पक्ष द्वितीय - माँ चन्द्र घंटा 
भगवती दुर्गा अपने तीसरे स्वरूप में चन्द्रघण्टा नाम से जानी जाती हैं। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है। इनका रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण से इन्हें चन्द्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग, बाण अस्त्र – शस्त्र आदि विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। इनके घंटे सी भयानक चण्ड ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं। नवरात्रे के दुर्गा-उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्याधिक महत्व है। माता चन्द्रधण्टा की उपासना हमारे इस लोक और परलोक दोनों के लिए परमकल्याणकारी और सद् गति को देने वाली है। 
                                                   ध्यान 
वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्॥
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्॥

स्तोत्र

आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्ति: शुभा पराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

कवच

रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धारं बिना होमं।
स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।
न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥

Day two Navratr-Maa Brahmacharini

       विक्रम सम्बत २०६८ -  आश्विन शुक्ल द्वितीया  माँ ब्रह्मचारिणी
 
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।

भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती। जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया, वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म - वेद, तत्व और तप। ' ब्रह्म ' शब्द का अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है। अपने पूर्व जन्म में ये राजा हिमालय के घर पुत्री रुप में उत्पन्न हुई थी। भगवान शंकर को पति रुप में प्राप्त करने के लिए इन्होने घोर तपस्या की थी। माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरुप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फ़ल देने वाला कहा गया है। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।

ध्यान
वन्दे वांच्छितलाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।
कवच
त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥
मां दुर्गा का तृतीय स्वरूपब्रह्मचारिणी

Tuesday, September 27, 2011

First day of Navratra-Maa Shailputri


  माँ शैलपुत्री  प्रथम दिबस - विक्रमसम्बत 2068 आश्विनशुक्ल प्रतिपदा



वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारुढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।। 


माँ दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हें शैल पुत्री कहा गया। भगवती का वाहन बैल है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थी । इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। पूर्वजन्म की भांति इस जन्म में भी यह भगवान शंकर की अर्द्धांगिनी बनीं। नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। नवरात्रे - पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है।

   ध्यान   
                     
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥ 
 
 स्तोत्र

 प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्।
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
          
 कवच

ओमकार: में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।
मां दुर्गा का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी


Wednesday, September 21, 2011

Can you believe it - Govt Tells SC, One Is Not Poor If One Spends Rs 26 A Day

Highest salary

Chairman & CEO of the  worlds largest steel company Arcelor Mittal - Mr.Lakshmi N Mittal is taking his salary 825 Cr.yearly because the company gain highly profit in the year 2010-2011

According to company report of 2010 salary of Mr. Lakshmi nivas mittal was $16.50 Cr. Last two year company was in lose so all the salary of senior staff except CEO of company was cut because of sale of steel was not as company expecting  

Lakshmi n mittal - Highest salary of the world

Chairman of the Board of Directors and CEO

ArcelorMittal is the world's leading steel company, with operations in more than 60 countries.

ArcelorMittal is the leader in all major global steel markets, including automotive, construction, household appliances and packaging, with leading R&D and technology, as well as size able captive supplies of raw materials and outstanding distribution networks.

With an industrial presence in over 20 countries spanning four continents, the Company covers all of the key steel markets, from emerging to mature. Through its core values of Sustainability, Quality and Leadership, ArcelorMittal commits to operating in a responsible way with respect to the health, safety and well being of its employees, contractors and the communities in which it operates. It is also committed to the sustainable management of the environment and of finite resources.

In 2010, ArcelorMittal had revenues of $78.0 billion and crude steel production of 90.6 million tonnes, representing approximately 8 per cent of world steel output.

Arcelor Mittal is listed on the stock exchanges of New York (MT), Amsterdam (MT), Paris (MT), Brussels (MT), Luxembourg (MT) and on the Spanish stock exchanges of Barcelona, Bilbao, Madrid and Valencia (MTS).

Suicide Bomber Kills Former Afghan President Rabbani

Monday, September 19, 2011

World's First Gold Car

Mysterious world

आश्चर्य जनक पेड़ जो आपने पहले कभी नहीं देखा होगा तस्बीरें आपके  सामने प्रस्तुत है 

Saturday, September 17, 2011

Technology-Enabled Microfinance: Mifos Fuels Growth and Impact at Gramee...

Aashtha

एक दिन साई बाबा अपनी ही कथा करते हुये बोले कि चार मित्र मिलकर धार्मिक व अन्य पुस्तकों का अध्ययन कर ब्रह्मा के मूलस्वरुप पर विचार करने लगे. एक ने कहा कि हमें अपना मार्ग स्वयं चुनना चाहिये.

 दूसरे पर निर्भर रहना उचित नही है. इस पर दूसरे ने कहा कि हमें अपने संकीर्ण विचारों व भावनाओं से मुक्त होना चाहिये, क्योकि इस संसार में हमारे अतिरिक्त और कुछ नही है.

तीसरे ने कहा कि यह संसार सदैव परिवर्तनशील है, केवल निराकार ही शाश्वत है. अतः हमें सत्य और असत्य का विचार करना चाहिये. तब

चौथे (स्वयं बाबा) ने कहा कि केवल पुस्तकीय ज्ञान से कोई लाभ नही. हमें तो कर्तव्य करते रहना चाहिये. दृढ़ विश्वास और पूर्ण निष्ठा पूर्वक हमें अपना तन, मन, धन और पंचप्राणादि सर्वव्यापक गुरुदेव को अर्पण कर देने चाहिये. गुरु भगवान है. सबका पालनहार है.

इस प्रकार तर्क-वितर्क के बाद हम चारों वन में ईश्वर की खोज के लिये निकले. मार्ग में हमें एक बंजारा मिला, जिसने हम लोगों से पूछा कि सज्जनों ! इतनी धूप में आप लोग कहा जा रहें हैं? प्रत्युत्तर में हम लोगों ने कहा कि वन की ओर ! उसने पुनः पूछा, कृप्या यह तो बताईये कि वन कि ओर जाने का उद्देश्य क्या है.? हम लोगों ने उसे टालमटोल वाला उत्तर दे दिया कि बिना पथ-प्रदर्शक के इस अपरिचित भयानक वन में भटकने का कोई लाभ नही है. यदि आप लोगों की तीव्र इच्छा ऐसी ही है तो कृप्या किसी योग्य पथ-प्रदर्शक को साथ ले लें. हम लोगों ने विचार किया कि हम स्वयं ही अपना लक्ष्य प्राप्त करने में समर्थ हैं, तब फ़िर हमें किसी सहारे की क्या आवश्यकता है.

अंत में हम मार्ग भूल गये और बहुत समय तक यहाँ-वहाँ भटकते रहे. भाग्यवश हम लोग उसी स्थान पर पुनः जा पहुँचे जहाँ से पहले प्रस्थान किया था. तब वही बंजारा हमें पुनः मिला और कहने लगा कि प्रत्येक कार्य में चाहे वह बड़ा हो या छोटा, मार्गदर्शक आवश्यक है. ईश्वर प्रेरणा के अभाव में सत्पुरुषों से भेंट होना सम्भव नही है. भूखे रहकर भी कोई कार्य पूर्ण नही हो सकता. इसलिये कोई आग्रहपूर्वक भोजन के लिये आमंत्रित करे तो उसे अस्वीकार न करो. भोजन तो भगवान का प्रसाद है. उसे ठुकराना उचित नही है. यदि कोई भोजन के लिये आग्रह करे तो उसे अपनी सफ़लता का प्रतीक मानों. इतना कहकर उसने भोजन करने का पुनः अनुरोध किया. फ़िर भी हम लोगों ने उसके अनुरोध की उपेक्षा कर भोजन करना अस्वीकार कर दिया.

उसके सरल और गूढ़ उपदेशों की ओर ध्यान दिये बिना ही मेरे तीन साथी आगे चल दिये. मैं भूख प्यास से व्याकुल था ही, बंजारे के अपूर्व प्रेम ने मुझे आकर्षित कर लिया. यद्यपि हम लोग अपने को अत्यंत विद्वान समझते थे, परन्तु दया एवं कृपा किसे कहते हैं उससे सर्वथा अनभिज्ञ ही थे. बंजारा था तो एक शूद्र, अनपढ़ और गँवार, परन्तु उसके हृदय में महान दया थी, जिसने बार-बार भोजन के लिये आग्रह किया. मैने सोचा कि इसका आग्रह स्वीकार कर लेना ज्ञान प्राप्ति के लिये शुभ आह्वान है और फ़िर मैंने इसी उसके दिये रुखे-सूखे भोजन को आदर व प्रेम पूर्वक स्वीकार कर लिया. भूख शांत होते ही मैं क्या देखता हूँ कि गुरुदेव तुरंत समक्ष प्रकट हो गये.

Tages:- शिरडी साई बाबा

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