Sunday, October 9, 2011

Deepawali Gift

Know More 
How you can make Happy to 
Maa Laxmi 
Before
Deepawali 
For whole Year  
In this critical period 
You will be the Happiest person of this world ,
http://www.youtube.com/watch?v=RpL5_pYAD9A&feature=uploademail

RAJNEETI

राजनीति - राज या नीती - ना राज ना नीती 
एसा लग रहा है जैसे राजनीति के मायने ही बदल गए हैं कोई भी उठकर किसी को कुछ भी कह देता है और मिडिया अपने अंदाज मैं उसका प्रोमोसन करने लगती है हर चैनल आशाराम बापू ने राहुल को बबलू क्या कह दिया मीडिया को बुरा लग गया ! हर चैनल कह रहा है आशाराम बडबोले हैं ,लोग अन्ना को भी एसा ही कुछ कहरहे हैं !

 मैं भी कांग्रेस का समर्थक रहा हूँ पर बाबा रामदेव के आन्दोलन  के टाइम पर कांग्रेस  का बर्ताब देखकर एसा लगा मनो लोग कुर्सी के लिए ही जी रहे हैं !उस वक्त ना राहुल सामने आये ना सोनिया ने ही कुछ कहा न अन्ना के अनसन के समय इनमें से कोई सामने आया उल्टा राहुल ने एक स्पीच सदन मैं पड़कर पल्ला झाड लिया  उनके स्पीच पड़ने के अंदाज से पता चल गया था की वो कितने पानी में हैं ! मनमोहन सिंह ने भी एसा कुछ नहीं किया जिससे एक पीएम की गरिमा की बातकही जा सके  उस पर आने वाले पीएम  का सपना अब शायद कभी पूरा नहीं होगा क्यों की अब लोकपाल बिल सामने आगया है ! आम आदमी और मीडिया दोनों अच्छी तरह जानते हैं की अन्ना हजारे का जन लोकपाल बिल ही हमें बचा सकता है शायद सरकार के नुमएंदे भी जानते हैं की अब कोई चारा नहीं है मगर स्वीकार करना नहीं चाहते ! महाराष्ट्र कांग्रेस का रालेगन सिध्धि जाना ही इसबात का प्रमाण है !           

          कुछ लोग कहते हैं की टीम अन्ना को आर अस अस का ,भारतीय जनता पार्टी का सपोर्ट है ,तो क्या बे  लोग आम आदमी नहीं हैं  क्या आसमान से टपके हैं क्या बे अन्ना को सपोर्ट नहीं कर सकते ? आर अस अस कोई पोलिटिकल पार्टी नहीं है बह किसीको  भी सपोर्ट कर सकती  है ! भजन लाल कहते हैं अन्ना कांग्रेस को हराकर किसे जितना चाहते हैं , तो मैं बताता हूँ की बे  एक एसा उम्मीदवार  चाहते हैं जिसकी छवि  ख़राब न हो चाहे बो किसी भी पार्टी का हो  पर कांग्रेस को हराना इसलिए जरूरी है क्योंकि बे जन लोकपाल बिल के खिलाफ हैं ! और हारकर शायद कुछ सबक लेले ! मीडिया भी समझले की अगर जन लोकपाल बिल आता है तो सारे मंत्री जेल जायेंगे  इसमें बुराइ  क्या है  कौन नहीं चाहता की उसकी  कमाई उसके और परिबार के काम आये बजाय  सरकार या सरकारी लोग लूट ले  अगर मीडिया या चैनल सरकार का सपोर्ट करते हैं तो या तो बे बीके हुए हैं या चापलूस हैं ! संसद , सरकार या मंत्री की कोई गरिमा नहीं होती , गरिमा होती है आम आदमी की  जिसकी बजह से ये सब होते  है अगर आम आदमी सुखी नहीं होगा तो इनसब का क्या आचार डालेंगे ! 

२०१४ का इलेक्शन तो बहुत दूर है ये जितने भी सरकार के बड़े मंत्री हैं सारे जेल जायेंगे और क्या क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा , इनकी ताजपोशी का जशंन तो हरयाणा के  इलेक्शन के बाद ही मनाया  जायेगा, साबित हो जायेगा  की कांग्रेस कहाँ खड़ी है ! मैं मीडिया से प्रार्थना करता हूँ की बे सच का साथ दे और अपने समाज बा परिवार के हित के विषय में  सोचें  अपने चैनल की झूटी शान के लिए नहीं !     .

                            

Tuesday, October 4, 2011

Navratri Day9 MAA SIDDHIDATRI

                                     विक्रम सम्बत २०६८   अश्विन्र शुक्ल नवमी   
                                                        सिद्धिदात्री
                      सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि
             सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी
 

माँ दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्री के नाम से जानी जाती है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह हैं और इनका आसन कमल है। इनकी दाहिनी तरफ़ के नीचे वाले हाथ में गदा, ऊपर वाले हाथ में चक्र तथा बायीं तरफ़ के नीचे वाले हाथ में ऊपर वाले हाथ में शंख और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प है। नवरात्रे - पूजन के नवें दिन इनकी उपासना की जाती है. इस दिन माता सिद्धिदात्री की उपासना से उपासक की सभी सांसारिक इच्छायें व आवश्यकताएँ पूर्णं हो जाती हैं।

ध्यान

वन्दे वांछितमनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।
शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥

स्तोत्र

कंचनाभा शंखचक्रगदामधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता।
विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।।
धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

कवच

ओंकार: पातुशीर्षोमां, ऐं बीजंमां हृदयो।
हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥

NAVRATRI DAY 8 MAHA GAURI

                                           विक्रम सम्बत २०६८ अश्विन शुक्ल अष्टमी  
                                                          महागौरी 


                  श्वेते वृषे समारुढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः
                   महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा
 

माँ दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फ़ूल से दी गई है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। भगवती महागौरी बैल के पीठ पर विराजमान हैं। इनकी चार भुजाएँ हैं। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय-मुद्रा और नीचे के दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बायें हाथ में डमरु और नीचे के बायें हाथ में वर-मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यन्त शान्त है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और अत्यन्त फ़लदायिनी है। इनकी उपासना से पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। उपासक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
ध्यान

वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थिातांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।
कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥

स्तोत्र

सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।
वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥

कवच

ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।
क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णो,हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।
कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥

NAVRATRI DAY 7 MAA KAALRATRI

                                                विक्रम सम्बत २०६८ शुक्लपक्ष सप्तमी 
                                                           माँ कालरात्री

             एकवेणी जपाकर्णपुरा नग्ना खरास्थिता।
              लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यशरीरिणी॥
             वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
             वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभर्यङ्करी ॥
 

माँ दुर्गा जी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हे। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्य गोल है। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वांस प्रश्वांस से अग्नि की भंयकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती है। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में खड्ग तथा नीचे वाले हाथ में कांटा है। माँ का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है। लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली है। इसी कारण इनका नाम शुभंकरी भी है। अत: इनसे किसी प्रकार भक्तों को भयभीत होने अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इनकी उपासना से उपासक के समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। 

ध्यान
करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥
स्तोत्र
हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्ीकुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥
कवच
ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।
ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम
कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥

NAVRATRI DAY SIXTH KAATYAYNI

                              विक्रम संबत २०६८   शुक्ल षष्ठी    माँ कात्यायनी 

                               चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
                कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

भगवती दुर्गा के छठें रूप का नाम कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला, और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला वरमुद्रा में, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प तथा नीचे वाले हाथ में तलवार है। इनका वाहन सिंह है। दुर्गा पूजा के छठवें दिन इनके इसी स्वरुप की उपासना की जाती है।

माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्यों को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फ़लों की प्राप्ति हो जाती है।

ध्यान

वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।
वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥
पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।
प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥

स्तोत्र

कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।
विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥

कवच

कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।
ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥
कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥


NAVRATRI DAY FIVE SKANDMATA



                                      विक्रम सम्बत २०६८  आश्विनशुक्ल  पंचमी  
                                  माँ स्कंदमाता
                  सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
              शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

भगवती दुर्गा के पाँचवे स्वरुप को स्कन्दमाता के रुप में माना जाता है। भगवान स्कन्द अर्थात् कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कन्द माता कहते हैं। स्कन्दमातृस्वरुपिणी देवी की चार भुजाएँ हैं। ये दाहिनी तरफ़ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। बायीं तरफ़ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है। उसमें भी कमल-पुष्प ली हुई हैं। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है। नवरात्रे - पूजन के पाँचवे दिन इन्ही माता की उपासना की जाती है। स्कन्द माता की उपासना से बालरुप स्कन्द भगवान की उपासना स्वयं हो जाती है।
माँ स्कन्द माता की उपासना से उपासक की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं।

ध्यान
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम।
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥
स्तोत्र
नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्‍‌नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।
सुधाíमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।
पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥
कवच
ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी।
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥