Tuesday, September 27, 2011

First day of Navratra-Maa Shailputri


  माँ शैलपुत्री  प्रथम दिबस - विक्रमसम्बत 2068 आश्विनशुक्ल प्रतिपदा



वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारुढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।। 


माँ दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हें शैल पुत्री कहा गया। भगवती का वाहन बैल है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थी । इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। पूर्वजन्म की भांति इस जन्म में भी यह भगवान शंकर की अर्द्धांगिनी बनीं। नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। नवरात्रे - पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है।

   ध्यान   
                     
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥ 
 
 स्तोत्र

 प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्।
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
          
 कवच

ओमकार: में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।
मां दुर्गा का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी


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