Tuesday, October 4, 2011

NAVRATRI DAY 7 MAA KAALRATRI

                                                विक्रम सम्बत २०६८ शुक्लपक्ष सप्तमी 
                                                           माँ कालरात्री

             एकवेणी जपाकर्णपुरा नग्ना खरास्थिता।
              लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यशरीरिणी॥
             वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
             वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभर्यङ्करी ॥
 

माँ दुर्गा जी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हे। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्य गोल है। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वांस प्रश्वांस से अग्नि की भंयकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती है। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में खड्ग तथा नीचे वाले हाथ में कांटा है। माँ का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है। लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली है। इसी कारण इनका नाम शुभंकरी भी है। अत: इनसे किसी प्रकार भक्तों को भयभीत होने अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इनकी उपासना से उपासक के समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। 

ध्यान
करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥
स्तोत्र
हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्ीकुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥
कवच
ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।
ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम
कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥

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