Sunday, July 1, 2012

Disha nirdharan











 
""दिशा का निर्धारण करें और अधिक से अधिक शेयर करें""
वास्तु शास्त्र की शुरुवात होती है दिशाओं के निर्धारण से , लोगों को अपने घर की दिशा को लेकर कुछ न कुछ भ्रम जरुर बना रहता है ,आज हम लोग बात करेंगे कि कैसे दिशा का निर्धारण किया जाये ।
वास्तु में दिशाओं का सर्वाधिक महत्व होता है। तभी तो भवन निर्माण करते समय या भूखण्ड क्रय करते समय दिशाओं का विशेष खयाल रखा जाता है।
**सबसे पहले बाजार से एक दिशा सूचक यंत्र खरीद कर अपने पास रखे रहें
**दिशा सूचक यंत्र को घर के मध्य में रखें
**दिशा सूचक यंत्र में 0 से लेकर 360 नम्बर लिखा मिलेगा
**दिशा सूचक यंत्र में एक नीडल [तीर का निशान] होता है जो थोड़ी देर घुमने के बाद स्थिर हो जाता है
**नीडल के स्थिर होने के बाद नीडल और ० को मिला दें
**नीडल और 0 को मिलाने के बाद नीडल कि दिशा उत्तर [N] दिशा कहलाती है ,जीरो के उपर उत्तर लिखा मिलेगा
**जहाँ पर 90 लिखा है वही पूर्व [E] दिशा होगा
**जहाँ पर 180 लिखा है वही दक्षिण [S] दिशा होगा
**जहाँ पर 270 लिखा है वही पश्चिम [W] दिशा होगा
**जहाँ पर 45 लिखा है वही इशान [NE] दिशा होगा
**जहाँ पर 135 लिखा है वही आग्नेय [SE] दिशा होगा
**जहाँ पर 225 लिखा है वही नेऋत्य [SW] दिशा होगा
**जहाँ पर 315 लिखा है वही वायव्य [NW] दिशा होगा

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