Saturday, December 31, 2011
Tuesday, November 15, 2011
Saturday, November 12, 2011
Friday, November 11, 2011
Sunday, November 6, 2011
Why Jan Lokpal Bill - Important
What is the Jan Lokpal Bill-why it's important
The Jan Lokpal Bill (Citizen's ombudsman Bill) is a draft anti-corruption bill drawn up by prominent civil society activists seeking the appointment of a Jan Lokpal, an independent body that would investigate corruption cases, complete the investigation within a year and envisages trial in the case getting over in the next one year.
Drafted by Justice Santosh Hegde (former Supreme Court Judge and former Lokayukta of Karnataka), Prashant Bhushan (Supreme Court Lawyer) and Arvind Kejriwal (RTI activist), the draft Bill envisages a system where a corrupt person found guilty would go to jail within two years of the complaint being made and his ill-gotten wealth being confiscated. It also seeks power to the Jan Lokpal to prosecute politicians and bureaucrats without government permission.
Retired IPS officer Kiran Bedi and other known people like Swami Agnivesh, Sri Sri Ravi Shankar, Anna Hazare and Mallika Sarabhai are also part of the movement, called India Against Corruption. Its website describes the movement as "an expression of collective anger of people of India against corruption. We have all come together to force/request/persuade/pressurize the Government to enact the Jan Lokpal Bill. We feel that if this Bill were enacted it would create an effective deterrence against corruption."
A look at the salient features of Jan Lokpal Bill :
2. Like Supreme Court and Election Commission, they will be completely independent of the governments. No minister or bureaucrat will be able to influence their investigations.
3. Cases against corrupt people will not linger on for years anymore: Investigations in any case will have to be completed in one year. Trial should be completed in next one year so that the corrupt politician, officer or judge is sent to jail within two years.
4. The loss that a corrupt person caused to the government will be recovered at the time of conviction.
5. How will it help a common citizen: If any work of any citizen is not done in prescribed time in any government office, Lokpal will impose financial penalty on guilty officers, which will be given as compensation to the complainant.
6. So, you could approach Lokpal if your ration card or passport or voter card is not being made or if police is not registering your case or any other work is not being done in prescribed time. Lokpal will have to get it done in a month's time. You could also report any case of corruption to Lokpal like ration being siphoned off, poor quality roads been constructed or panchayat funds being siphoned off. Lokpal will have to complete its investigations in a year, trial will be over in next one year and the guilty will go to jail within two years.
7. But won't the government appoint corrupt and weak people as Lokpal members? That won't be possible because its members will be selected by judges, citizens and constitutional authorities and not by politicians, through a completely transparent and participatory process.
8. What if some officer in Lokpal becomes corrupt? The entire functioning of Lokpal/ Lokayukta will be completely transparent. Any complaint against any officer of Lokpal shall be investigated and the officer dismissed within two months.
9. What will happen to existing anti-corruption agencies? CVC, departmental vigilance and anti-corruption branch of CBI will be merged into Lokpal. Lokpal will have complete powers and machinery to independently investigate and prosecute any officer, judge or politician.
10. It will be the duty of the Lokpal to provide protection to those who are being victimized for raising their voice against corruption.
Thursday, October 27, 2011
Tuesday, October 18, 2011
Sunday, October 9, 2011
RAJNEETI
राजनीति - राज या नीती - ना राज ना नीती
एसा लग रहा है जैसे राजनीति के मायने ही बदल गए हैं कोई भी उठकर किसी को कुछ भी कह देता है और मिडिया अपने अंदाज मैं उसका प्रोमोसन करने लगती है हर चैनल आशाराम बापू ने राहुल को बबलू क्या कह दिया मीडिया को बुरा लग गया ! हर चैनल कह रहा है आशाराम बडबोले हैं ,लोग अन्ना को भी एसा ही कुछ कहरहे हैं !
मैं भी कांग्रेस का समर्थक रहा हूँ पर बाबा रामदेव के आन्दोलन के टाइम पर कांग्रेस का बर्ताब देखकर एसा लगा मनो लोग कुर्सी के लिए ही जी रहे हैं !उस वक्त ना राहुल सामने आये ना सोनिया ने ही कुछ कहा न अन्ना के अनसन के समय इनमें से कोई सामने आया उल्टा राहुल ने एक स्पीच सदन मैं पड़कर पल्ला झाड लिया उनके स्पीच पड़ने के अंदाज से पता चल गया था की वो कितने पानी में हैं ! मनमोहन सिंह ने भी एसा कुछ नहीं किया जिससे एक पीएम की गरिमा की बातकही जा सके उस पर आने वाले पीएम का सपना अब शायद कभी पूरा नहीं होगा क्यों की अब लोकपाल बिल सामने आगया है ! आम आदमी और मीडिया दोनों अच्छी तरह जानते हैं की अन्ना हजारे का जन लोकपाल बिल ही हमें बचा सकता है शायद सरकार के नुमएंदे भी जानते हैं की अब कोई चारा नहीं है मगर स्वीकार करना नहीं चाहते ! महाराष्ट्र कांग्रेस का रालेगन सिध्धि जाना ही इसबात का प्रमाण है !
कुछ लोग कहते हैं की टीम अन्ना को आर अस अस का ,भारतीय जनता पार्टी का सपोर्ट है ,तो क्या बे लोग आम आदमी नहीं हैं क्या आसमान से टपके हैं क्या बे अन्ना को सपोर्ट नहीं कर सकते ? आर अस अस कोई पोलिटिकल पार्टी नहीं है बह किसीको भी सपोर्ट कर सकती है ! भजन लाल कहते हैं अन्ना कांग्रेस को हराकर किसे जितना चाहते हैं , तो मैं बताता हूँ की बे एक एसा उम्मीदवार चाहते हैं जिसकी छवि ख़राब न हो चाहे बो किसी भी पार्टी का हो पर कांग्रेस को हराना इसलिए जरूरी है क्योंकि बे जन लोकपाल बिल के खिलाफ हैं ! और हारकर शायद कुछ सबक लेले ! मीडिया भी समझले की अगर जन लोकपाल बिल आता है तो सारे मंत्री जेल जायेंगे इसमें बुराइ क्या है कौन नहीं चाहता की उसकी कमाई उसके और परिबार के काम आये बजाय सरकार या सरकारी लोग लूट ले अगर मीडिया या चैनल सरकार का सपोर्ट करते हैं तो या तो बे बीके हुए हैं या चापलूस हैं ! संसद , सरकार या मंत्री की कोई गरिमा नहीं होती , गरिमा होती है आम आदमी की जिसकी बजह से ये सब होते है अगर आम आदमी सुखी नहीं होगा तो इनसब का क्या आचार डालेंगे !
२०१४ का इलेक्शन तो बहुत दूर है ये जितने भी सरकार के बड़े मंत्री हैं सारे जेल जायेंगे और क्या क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा , इनकी ताजपोशी का जशंन तो हरयाणा के इलेक्शन के बाद ही मनाया जायेगा, साबित हो जायेगा की कांग्रेस कहाँ खड़ी है ! मैं मीडिया से प्रार्थना करता हूँ की बे सच का साथ दे और अपने समाज बा परिवार के हित के विषय में सोचें अपने चैनल की झूटी शान के लिए नहीं ! .
Tuesday, October 4, 2011
Navratri Day9 MAA SIDDHIDATRI
विक्रम सम्बत २०६८ अश्विन्र शुक्ल नवमी
सिद्धिदात्री
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी
माँ दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्री के नाम से जानी जाती है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह हैं और इनका आसन कमल है। इनकी दाहिनी तरफ़ के नीचे वाले हाथ में गदा, ऊपर वाले हाथ में चक्र तथा बायीं तरफ़ के नीचे वाले हाथ में ऊपर वाले हाथ में शंख और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प है। नवरात्रे - पूजन के नवें दिन इनकी उपासना की जाती है. इस दिन माता सिद्धिदात्री की उपासना से उपासक की सभी सांसारिक इच्छायें व आवश्यकताएँ पूर्णं हो जाती हैं।
ध्यान
वन्दे वांछितमनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।
शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥
कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।
शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥
स्तोत्र
कंचनाभा शंखचक्रगदामधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता।
विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।।
धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता।
विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।।
धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
कवच
ओंकार: पातुशीर्षोमां, ऐं बीजंमां हृदयो।
हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥
हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥
NAVRATRI DAY 8 MAHA GAURI
विक्रम सम्बत २०६८ अश्विन शुक्ल अष्टमी
महागौरी
श्वेते वृषे समारुढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा
माँ दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फ़ूल से दी गई है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। भगवती महागौरी बैल के पीठ पर विराजमान हैं। इनकी चार भुजाएँ हैं। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय-मुद्रा और नीचे के दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बायें हाथ में डमरु और नीचे के बायें हाथ में वर-मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यन्त शान्त है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और अत्यन्त फ़लदायिनी है। इनकी उपासना से पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। उपासक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
ध्यान
वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थिातांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।
कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थिातांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।
कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥
स्तोत्र
सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।
वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।
वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥
कवच
ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।
क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णो,हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।
कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥
क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णो,हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।
कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥
NAVRATRI DAY 7 MAA KAALRATRI
विक्रम सम्बत २०६८ शुक्लपक्ष सप्तमी
माँ कालरात्री
एकवेणी जपाकर्णपुरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यशरीरिणी॥
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभर्यङ्करी ॥
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यशरीरिणी॥
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभर्यङ्करी ॥
माँ दुर्गा जी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हे। इनके
शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं।
गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों
नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्य गोल है। इनसे विद्युत के समान चमकीली
किरणें नि:सृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वांस प्रश्वांस से अग्नि की
भंयकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ऊपर उठे हुए दाहिने
हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती है। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ
अभय मुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में खड्ग तथा नीचे वाले
हाथ में कांटा है। माँ का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है। लेकिन ये सदैव
शुभ फल ही देने वाली है। इसी कारण इनका नाम शुभंकरी भी है। अत: इनसे
किसी प्रकार भक्तों को भयभीत होने अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इनकी
उपासना से उपासक के समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है।
ध्यान
करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघोर्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघोर्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥
स्तोत्र
हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्ीकुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्ीकुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥
कवच
ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।
ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम
कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥
ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम
कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥
NAVRATRI DAY SIXTH KAATYAYNI
विक्रम संबत २०६८ शुक्ल षष्ठी माँ कात्यायनी
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
भगवती दुर्गा के छठें रूप का
नाम कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई
थी। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक
तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध
किया था। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के
समान चमकीला, और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का
ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला वरमुद्रा में, बाई तरफ के
ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प तथा नीचे वाले हाथ में तलवार है। इनका वाहन
सिंह है। दुर्गा पूजा के छठवें दिन इनके इसी स्वरुप की उपासना की जाती है।
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्यों को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फ़लों की प्राप्ति हो जाती है।
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।
वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥
पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।
प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥
सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।
वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥
पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।
प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥
स्तोत्र
कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।
विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥
स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।
विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥
कवच
कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।
ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥
कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥
ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥
कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥
NAVRATRI DAY FIVE SKANDMATA
विक्रम सम्बत २०६८ आश्विनशुक्ल पंचमी
माँ स्कंदमाता
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
भगवती दुर्गा के पाँचवे स्वरुप
को स्कन्दमाता के रुप में माना जाता है। भगवान स्कन्द अर्थात् कार्तिकेय
की माता होने के कारण इन्हें स्कन्द माता कहते हैं। स्कन्दमातृस्वरुपिणी
देवी की चार भुजाएँ हैं। ये दाहिनी तरफ़ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द
को गोद में पकड़े हुए हैं। बायीं तरफ़ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा
नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है। उसमें भी कमल-पुष्प ली हुई हैं। ये
कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा
जाता है। सिंह भी इनका वाहन है। नवरात्रे - पूजन के पाँचवे दिन इन्ही माता
की उपासना की जाती है। स्कन्द माता की उपासना से बालरुप स्कन्द भगवान की
उपासना स्वयं हो जाती है।
माँ स्कन्द माता की उपासना से उपासक की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं।
ध्यान
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम।
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥
सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम।
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥
स्तोत्र
नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।
सुधाíमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।
पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।
सुधाíमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।
पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥
कवच
ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी।
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥
हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी।
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥
Thursday, September 29, 2011
Day 3 - 4 Navratri - Maa kushmaanda
विक्रम सम्बत २०६८ - आश्विन शुक्ल चतुर्थी - माँ कुष्मांडा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
भगवती दुर्गा के चौथे स्वरूप
का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को
उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया
है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था। चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त
था। तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अत:
यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का
अस्तित्व था ही नहीं। इनकी आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमश:
कमण्डल, धनुष बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ
में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
नवरात्रे -पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरुप की ही उपासना की
जाती है। इस दिन माँ कूष्माण्डा की उपासना से आयु, यश,
बल ,और स्वास्थ्य
में वृद्धि होती है।
ध्यान
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्नकुण्डल मण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्।
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्नकुण्डल मण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्।
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥
स्तोत्र
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्।
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्।
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
कवच
हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा।
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥
हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा।
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥
Day 3 Navratri - Maa Chandra ghanta
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता
संवत २०६८ अश्विन्शुक्ल्पक्ष द्वितीय - माँ चन्द्र घंटा
भगवती दुर्गा अपने तीसरे
स्वरूप में चन्द्रघण्टा नाम से जानी जाती हैं। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं
के विग्रह का पूजन किया जाता है। इनका रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी
है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण से इन्हें
चन्द्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं।
इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग, बाण अस्त्र – शस्त्र आदि
विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की
होती है। इनके घंटे सी भयानक चण्ड ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस
सदैव प्रकम्पित रहते हैं। नवरात्रे के दुर्गा-उपासना में तीसरे दिन की
पूजा का अत्याधिक महत्व है। माता चन्द्रधण्टा की उपासना हमारे इस लोक और
परलोक दोनों के लिए परमकल्याणकारी और सद् गति को देने वाली है।
ध्यान
वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्॥
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्॥
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्॥
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्॥
स्तोत्र
आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्ति: शुभा पराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
कवच
रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धारं बिना होमं।
स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।
न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धारं बिना होमं।
स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।
न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
Day two Navratr-Maa Brahmacharini
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।
भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों
का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का
आचरण करने वाली भगवती। जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया, वेदस्तत्त्वं
तपो ब्रह्म - वेद, तत्व और तप। ' ब्रह्म ' शब्द का अर्थ है ब्रह्मचारिणी
देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथ में
जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है। अपने पूर्व जन्म में ये राजा
हिमालय के घर पुत्री रुप में उत्पन्न हुई थी। भगवान शंकर को पति रुप में
प्राप्त करने के लिए इन्होने घोर तपस्या की थी। माँ दुर्गा का यह दूसरा
स्वरुप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फ़ल देने वाला कहा गया है। माँ
ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।
ध्यान
वन्दे वांच्छितलाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।
कवच
त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥
मां दुर्गा का तृतीय स्वरूपब्रह्मचारिणी
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥
मां दुर्गा का तृतीय स्वरूपब्रह्मचारिणी
Tuesday, September 27, 2011
First day of Navratra-Maa Shailputri
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारुढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।।
वृषारुढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।।
माँ दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप
में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने
के कारण इन्हें शैल पुत्री कहा गया। भगवती का वाहन बैल है। इनके दाहिने
हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। अपने पूर्व जन्म में ये
सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थी । इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था।
पूर्वजन्म की भांति इस जन्म में भी यह भगवान शंकर की अर्द्धांगिनी बनीं।
नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं।
नवरात्रे - पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है।
ध्यान
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥
स्तोत्र
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्।
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
कवच
ओमकार: में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।
मां दुर्गा का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी
Saturday, September 24, 2011
Wednesday, September 21, 2011
Highest salary
Chairman & CEO of the worlds largest steel company Arcelor Mittal - Mr.Lakshmi N Mittal is taking his salary 825 Cr.yearly because the company gain highly profit in the year 2010-2011
According to company report of 2010 salary of Mr. Lakshmi nivas mittal was $16.50 Cr. Last two year company was in lose so all the salary of senior staff except CEO of company was cut because of sale of steel was not as company expecting
According to company report of 2010 salary of Mr. Lakshmi nivas mittal was $16.50 Cr. Last two year company was in lose so all the salary of senior staff except CEO of company was cut because of sale of steel was not as company expecting
Lakshmi n mittal - Highest salary of the world
Chairman of the Board of Directors and CEO
ArcelorMittal is the world's leading steel company, with operations in more than 60 countries.
ArcelorMittal is the leader in all major global steel markets, including automotive, construction, household appliances and packaging, with leading R&D and technology, as well as size able captive supplies of raw materials and outstanding distribution networks.
With an industrial presence in over 20 countries spanning four continents, the Company covers all of the key steel markets, from emerging to mature. Through its core values of Sustainability, Quality and Leadership, ArcelorMittal commits to operating in a responsible way with respect to the health, safety and well being of its employees, contractors and the communities in which it operates. It is also committed to the sustainable management of the environment and of finite resources.
In 2010, ArcelorMittal had revenues of $78.0 billion and crude steel production of 90.6 million tonnes, representing approximately 8 per cent of world steel output.
Arcelor Mittal is listed on the stock exchanges of New York (MT), Amsterdam (MT), Paris (MT), Brussels (MT), Luxembourg (MT) and on the Spanish stock exchanges of Barcelona, Bilbao, Madrid and Valencia (MTS).Monday, September 19, 2011
Saturday, September 17, 2011
Aashtha
एक दिन साई बाबा अपनी ही कथा करते हुये बोले कि चार मित्र मिलकर धार्मिक व
अन्य पुस्तकों का अध्ययन कर ब्रह्मा के मूलस्वरुप पर विचार करने लगे. एक ने
कहा कि हमें अपना मार्ग स्वयं चुनना चाहिये.
दूसरे पर निर्भर रहना उचित नही है. इस पर दूसरे ने कहा कि हमें अपने संकीर्ण विचारों व भावनाओं से मुक्त होना चाहिये, क्योकि इस संसार में हमारे अतिरिक्त और कुछ नही है.
तीसरे ने कहा कि यह संसार सदैव परिवर्तनशील है, केवल निराकार ही शाश्वत है. अतः हमें सत्य और असत्य का विचार करना चाहिये. तब
चौथे (स्वयं बाबा) ने कहा कि केवल पुस्तकीय ज्ञान से कोई लाभ नही. हमें तो कर्तव्य करते रहना चाहिये. दृढ़ विश्वास और पूर्ण निष्ठा पूर्वक हमें अपना तन, मन, धन और पंचप्राणादि सर्वव्यापक गुरुदेव को अर्पण कर देने चाहिये. गुरु भगवान है. सबका पालनहार है.
इस प्रकार तर्क-वितर्क के बाद हम चारों वन में ईश्वर की खोज के लिये निकले. मार्ग में हमें एक बंजारा मिला, जिसने हम लोगों से पूछा कि सज्जनों ! इतनी धूप में आप लोग कहा जा रहें हैं? प्रत्युत्तर में हम लोगों ने कहा कि वन की ओर ! उसने पुनः पूछा, कृप्या यह तो बताईये कि वन कि ओर जाने का उद्देश्य क्या है.? हम लोगों ने उसे टालमटोल वाला उत्तर दे दिया कि बिना पथ-प्रदर्शक के इस अपरिचित भयानक वन में भटकने का कोई लाभ नही है. यदि आप लोगों की तीव्र इच्छा ऐसी ही है तो कृप्या किसी योग्य पथ-प्रदर्शक को साथ ले लें. हम लोगों ने विचार किया कि हम स्वयं ही अपना लक्ष्य प्राप्त करने में समर्थ हैं, तब फ़िर हमें किसी सहारे की क्या आवश्यकता है.
अंत में हम मार्ग भूल गये और बहुत समय तक यहाँ-वहाँ भटकते रहे. भाग्यवश हम लोग उसी स्थान पर पुनः जा पहुँचे जहाँ से पहले प्रस्थान किया था. तब वही बंजारा हमें पुनः मिला और कहने लगा कि प्रत्येक कार्य में चाहे वह बड़ा हो या छोटा, मार्गदर्शक आवश्यक है. ईश्वर प्रेरणा के अभाव में सत्पुरुषों से भेंट होना सम्भव नही है. भूखे रहकर भी कोई कार्य पूर्ण नही हो सकता. इसलिये कोई आग्रहपूर्वक भोजन के लिये आमंत्रित करे तो उसे अस्वीकार न करो. भोजन तो भगवान का प्रसाद है. उसे ठुकराना उचित नही है. यदि कोई भोजन के लिये आग्रह करे तो उसे अपनी सफ़लता का प्रतीक मानों. इतना कहकर उसने भोजन करने का पुनः अनुरोध किया. फ़िर भी हम लोगों ने उसके अनुरोध की उपेक्षा कर भोजन करना अस्वीकार कर दिया.
उसके सरल और गूढ़ उपदेशों की ओर ध्यान दिये बिना ही मेरे तीन साथी आगे चल दिये. मैं भूख प्यास से व्याकुल था ही, बंजारे के अपूर्व प्रेम ने मुझे आकर्षित कर लिया. यद्यपि हम लोग अपने को अत्यंत विद्वान समझते थे, परन्तु दया एवं कृपा किसे कहते हैं उससे सर्वथा अनभिज्ञ ही थे. बंजारा था तो एक शूद्र, अनपढ़ और गँवार, परन्तु उसके हृदय में महान दया थी, जिसने बार-बार भोजन के लिये आग्रह किया. मैने सोचा कि इसका आग्रह स्वीकार कर लेना ज्ञान प्राप्ति के लिये शुभ आह्वान है और फ़िर मैंने इसी उसके दिये रुखे-सूखे भोजन को आदर व प्रेम पूर्वक स्वीकार कर लिया. भूख शांत होते ही मैं क्या देखता हूँ कि गुरुदेव तुरंत समक्ष प्रकट हो गये.
दूसरे पर निर्भर रहना उचित नही है. इस पर दूसरे ने कहा कि हमें अपने संकीर्ण विचारों व भावनाओं से मुक्त होना चाहिये, क्योकि इस संसार में हमारे अतिरिक्त और कुछ नही है.
तीसरे ने कहा कि यह संसार सदैव परिवर्तनशील है, केवल निराकार ही शाश्वत है. अतः हमें सत्य और असत्य का विचार करना चाहिये. तब
चौथे (स्वयं बाबा) ने कहा कि केवल पुस्तकीय ज्ञान से कोई लाभ नही. हमें तो कर्तव्य करते रहना चाहिये. दृढ़ विश्वास और पूर्ण निष्ठा पूर्वक हमें अपना तन, मन, धन और पंचप्राणादि सर्वव्यापक गुरुदेव को अर्पण कर देने चाहिये. गुरु भगवान है. सबका पालनहार है.
इस प्रकार तर्क-वितर्क के बाद हम चारों वन में ईश्वर की खोज के लिये निकले. मार्ग में हमें एक बंजारा मिला, जिसने हम लोगों से पूछा कि सज्जनों ! इतनी धूप में आप लोग कहा जा रहें हैं? प्रत्युत्तर में हम लोगों ने कहा कि वन की ओर ! उसने पुनः पूछा, कृप्या यह तो बताईये कि वन कि ओर जाने का उद्देश्य क्या है.? हम लोगों ने उसे टालमटोल वाला उत्तर दे दिया कि बिना पथ-प्रदर्शक के इस अपरिचित भयानक वन में भटकने का कोई लाभ नही है. यदि आप लोगों की तीव्र इच्छा ऐसी ही है तो कृप्या किसी योग्य पथ-प्रदर्शक को साथ ले लें. हम लोगों ने विचार किया कि हम स्वयं ही अपना लक्ष्य प्राप्त करने में समर्थ हैं, तब फ़िर हमें किसी सहारे की क्या आवश्यकता है.
अंत में हम मार्ग भूल गये और बहुत समय तक यहाँ-वहाँ भटकते रहे. भाग्यवश हम लोग उसी स्थान पर पुनः जा पहुँचे जहाँ से पहले प्रस्थान किया था. तब वही बंजारा हमें पुनः मिला और कहने लगा कि प्रत्येक कार्य में चाहे वह बड़ा हो या छोटा, मार्गदर्शक आवश्यक है. ईश्वर प्रेरणा के अभाव में सत्पुरुषों से भेंट होना सम्भव नही है. भूखे रहकर भी कोई कार्य पूर्ण नही हो सकता. इसलिये कोई आग्रहपूर्वक भोजन के लिये आमंत्रित करे तो उसे अस्वीकार न करो. भोजन तो भगवान का प्रसाद है. उसे ठुकराना उचित नही है. यदि कोई भोजन के लिये आग्रह करे तो उसे अपनी सफ़लता का प्रतीक मानों. इतना कहकर उसने भोजन करने का पुनः अनुरोध किया. फ़िर भी हम लोगों ने उसके अनुरोध की उपेक्षा कर भोजन करना अस्वीकार कर दिया.
उसके सरल और गूढ़ उपदेशों की ओर ध्यान दिये बिना ही मेरे तीन साथी आगे चल दिये. मैं भूख प्यास से व्याकुल था ही, बंजारे के अपूर्व प्रेम ने मुझे आकर्षित कर लिया. यद्यपि हम लोग अपने को अत्यंत विद्वान समझते थे, परन्तु दया एवं कृपा किसे कहते हैं उससे सर्वथा अनभिज्ञ ही थे. बंजारा था तो एक शूद्र, अनपढ़ और गँवार, परन्तु उसके हृदय में महान दया थी, जिसने बार-बार भोजन के लिये आग्रह किया. मैने सोचा कि इसका आग्रह स्वीकार कर लेना ज्ञान प्राप्ति के लिये शुभ आह्वान है और फ़िर मैंने इसी उसके दिये रुखे-सूखे भोजन को आदर व प्रेम पूर्वक स्वीकार कर लिया. भूख शांत होते ही मैं क्या देखता हूँ कि गुरुदेव तुरंत समक्ष प्रकट हो गये.
Tages:- शिरडी साई बाबा
Friday, September 16, 2011
Wednesday, September 14, 2011
Tuesday, September 13, 2011
Monday, September 12, 2011
Sunday, September 11, 2011
Saturday, September 10, 2011
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